स्किन पिगमेंट के प्रकार, रोग और त्वचा के रंग के पीछे का विज्ञान – Skin Pigments in Hindi

स्किन पिगमेंट के प्रकार, रोग और त्वचा के रंग के पीछे का विज्ञान - Skin Pigments in Hindi

स्किन पिगमेंट के प्रकार, रोग और त्वचा के रंग के पीछे का विज्ञान – Skin Pigments in Hindi

“आपने कभी सोचा है कि हमारी त्वचा का रंग बदलता क्यों है? कुछ लोग गोरे तो कुछ काले क्यों होते हैं? हम आपको बता दें कि त्वचा के रंग के पीछे का विज्ञान समझने के लिए ‘स्किन पिगमेंट’ या ‘त्वचा वर्णक’ को समझना होगा। आइये इस लेख में हम ‘स्किन पिग्मेंटेशन’ क्या है, त्वचा वर्णक के प्रकार, त्वचा के रंग का महत्व और इससे संबंधित रोग के बारे में जानते हैं।”

स्किन पिगमेंट क्या होते हैं – What is Skin Pigments in Hindi

त्वचा रंगद्रव्य त्वचा के भीतर प्राकृतिक पदार्थ हैं, जो मानव त्वचा, बाल और आंखों को रंग प्रदान करते हैं। यह पदार्थ विशेष कोशिकाओं द्वारा पैदा होते हैं। ये रंगद्रव्य किसी व्यक्ति की त्वचा की रंजकता, और रंग को निर्धारित करते हैं। त्वचा के रंग में शामिल दो प्राथमिक रंगद्रव्य मेलेनिन (melanin) और कैरोटीन (carotene) हैं।

स्किन पिगमेंट के प्रकार – Types of Skin Pigments in Hindi

त्वचा रंगद्रव्य या स्किन पिगमेंट का सीधा संबंध मेलेनिन से होता है, जो त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार प्रमुख रंगद्रव्य है।

मेलानिन (Melanin): मेलानिन एपिडर्मिस में स्थित मेलानोसाइट्स (melanocytes) नामक विशेष कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। यह एक ब्राउन/काला या लाल/पीला रंग का त्वचा वर्णक हैं। मेलेनिन दो मुख्य प्रकार का होता है:

  • यूमेलानिन (Eumelanin): इस प्रकार का मेलेनिन ब्राउन या काला रंग पैदा करता है। यह गहरे रंग की त्वचा के लिए ज़िम्मेदार है और सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) विकिरण से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • फोमेलैनिन (Pheomelanin): फोमेलैनिन लाल या पीला रंगद्रव्य होता है। यह त्वचा की रंगत को हल्का करने में योगदान देता है और यूमेलानिन की तुलना में यूवी विकिरण से बचाने में कम प्रभावी है।

कैरोटीन(Carotene): कैरोटीन एक पीला-नारंगी रंगद्रव्य है, जो कुछ फलों और सब्जियों, जैसे गाजर और शकरकंद में पाया जाता है। विशेष रूप से हल्की स्किन टोन वाले व्यक्तियों में, यह हल्के पीले या नारंगी रंग की स्किन में योगदान देता है। कैरोटीन एक बहिर्जात वर्णक (exogenous pigment) है, क्योंकि इसका निर्माण त्वचा में नहीं होता है, इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण किया जाता है।

हीमोग्लोबिन (Haemoglobin): हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में एक प्रोटीन है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है। गोरी त्वचा वाले व्यक्तियों में, हीमोग्लोबिन की उपस्थिति त्वचा को गुलाबी या लाल रंग दे सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां रक्त वाहिकाएं सतह के करीब होती हैं, जैसे गाल।

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त्वचा के रंग के पीछे का विज्ञान – The Science of Skin Color in Hindi

त्वचा के रंग का विज्ञान, या स्किन कलर की स्टडी को डर्मेटोग्लिफिक्स (dermatoglyphics ) या पिगमेंटोलॉजी (pigmentology) के रूप में जाना जाता है। इसमें मानव त्वचा टोन में पाई जाने वाली भिन्नता के अंतर्निहित कारणों का अध्ययन किया जाता है।

आनुवंशिक, पर्यावरणीय और शारीरिक जैसे अनेक कारकों से त्वचा का रंग प्रभावित होता है। त्वचा के रंग के पीछे के विज्ञान को समझने के लिए त्वचा की रंजकता में अपना योगदान देने वाले इन कारकों को समझते हैं:

आनुवंशिक आधार: त्वचा के रंग का प्राथमिक निर्धारक आनुवंशिकी है। स्किन पिगमेंट (अर्थात मेलेनिन) के उत्पादन, वितरण और प्रकार को नियंत्रित करने वाले जीन में भिन्नताएं ही, किसी व्यक्ति की त्वचा का रंग निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मेलेनिन की मात्रा और प्रकार को प्रभावित करने वाले जीन में निम्न शामिल हैं: MC1R, TYR, और OCA2।

मेलानिन का उत्पादन: मेलानिन का उत्पादन मेलानोसाइट्स कोशिकाओं द्वारा होता है। मेलेनिन के दो मुख्य प्रकार हैं: यूमेलानिन, जो भूरा या काला रंग पैदा करता है, और फोमेलैनिन, जो लाल या पीला रंग पैदा करता है। इन मेलानिन के प्रकारों के आपसी अनुपात में भिन्नता के कारण ही त्वचा के रंग में भिन्नता देखने को मिलती है।

पर्यावरणीय कारक: त्वचा के रंग में भिन्नता संबंधी पर्यावरणीय कारको में सूर्य प्रकाश भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सूर्य की पराबैंगनी (यूवी) विकिरण से शरीर की सुरक्षा करने के लिए, मानव स्किन एक सुरक्षात्मक तंत्र के रूप में कार्य करती है और अधिक मेलेनिन का उत्पादन करने करती है। यही कारण है कि लंबे समय तक धूप में रहने से त्वचा काली पड़ सकती है।

भौगोलिक स्थितियां: भूमध्य रेखा (equator) के करीब स्थित शहरों में, जहां सूर्य का प्रकाश (यूवी विकिरण) अधिक तीव्र होता है, उनकी त्वचा का रंग गहरा (डार्क) होता है। इसके विपरीत, कम तीव्र यूवी विकिरण वाले उच्च अक्षांशों (higher latitudes) अर्थात सीमित सूर्य के प्रकाश वाले क्षेत्रों में रहने वाली आबादी में त्वचा का रंग हल्का होता है।

(यह भी जानें:धूप में जाने से स्किन काली क्यों होती है, त्वचा रंग की पूरी सच्चाई…)

स्किन पिगमेंट का महत्व – Importance of Skin Pigments in Hindi

त्वचा रंगद्रव्य के मानव शरीर में निम्न महत्वपूर्ण कार्य होते हैं:

  • शरीर और त्वचा की यूवी विकिरण से सुरक्षा।
  • विटामिन डी के संश्लेषण को नियंत्रित करना।
  • त्वचा के रंग का निर्धारण।

त्वचा रंजकता विकार के प्रकार – Types Of Skin Pigmentation Disorders In Hindi

त्वचा रंजकता विकारों अर्थात स्किन पिगमेंटेशन डिसऑर्डर को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: हाइपरपिग्मेंटेशन, हाइपोपिग्मेंटेशन और डिपिग्मेंटेशन।

  1. डिपिगमेंटेशन (Depigmentation) यह स्किन पिगमेंटेशन विकार तब होता है, जब मेलानिन पिगमेंट का भारी नुकसान होता है, इससे मानव त्वचा अपना प्राकृतिक रंग खो सकती है या त्वचा सफ़ेद हो सकती है। वर्णक का ऐसा नुकसान अस्थायी या स्थायी हो सकता है। इसके अंतर्गत विटिलिगो (vitiligo) डिसऑर्डर शामिल है।
  2. हाइपोपिगमेंटेशन (Hypopigmentation) जब मेलानोसाइट कोशिकाएं कम मात्रा में मेलानिन वर्णक का उत्पादन करती हैं, तब  त्वचा का रंग सामान्य से हल्का (फीका) या सामान्य से अधिक पीली दिखने लगता है। इसके अंतर्गत ऐल्बिनिज़म (albinism) अर्थात रंगहीनता विकार शामिल है।
  3. हाइपरपिग्मेंटेशन (Hyperpigmentation) यह स्किन पिगमेंटेशन की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब मेलानोसाइट्स कोशिकाएं बड़ी मात्रा में मेलानिन का उत्पादन करती हैं, जिससे त्वचा सामान्य से बहुत अधिक काली दिखने लगती है। सूर्य प्रकाश, कुछ दवाओं, या कुछ रंगीन पदार्थों के अत्यधिक संपर्क में आने से हाइपरपिग्मेंटेशन विकार उत्पन्न हो सकता है। इसके अंतर्गत मेलास्मा (Melasma) डिसऑर्डर शामिल है।

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